Indian Railways: भारत में जब भी किसी को एक से दूसरे शहर जाना होता है तो उस दौरान अधिकतर लोग ट्रेन से सफर करना पसंद करते हैं, क्योंकि यह सबसे सुरक्षित माना जाता है। ट्रेन से सफर करने का दूसरा फायदा यह है कि इसमें हमें अपनी सुविधाओं के अनुसार पैसे खर्च करने होते हैं।
जिन लोगों के पास अधिक पैसे हैं वो लोग एसी से सफर करते हैं। वहीं, जो लोग अपनी यात्रा पर अधिक खर्च नहीं कर सकते हैं उनके पास जनरल के रूप में अन्य विकल्प मौजूद है। क्योंकि इसमें बहुत कम पैसों में सफर किया जा सकता है। भारत में फिलहाल 7325 छोटे-बड़े रेलवे स्टेशन है जहां से लाखों लोग प्रत्येक दिन सफर करते हैं। आज हम एक ऐसे रेलवे स्टेशन के बारे में बात करने जा रहे हैं जहां पर सभी ट्रेन को रुक कर सलामी देनी पड़ती है।
इस रेलवे स्टेशन पर सभी ट्रेन को रूक कर देनी पड़ती है सलामी
भारत जनसंख्या के मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा है, इस वजह से इंडिया की आबादी दुनिया में सबसे अधिक हो चुकी है। हिंदुस्तान एक धर्म निरपेक्ष देश है जहां अलग-अलग तरह की मान्यताएं हैं। इसी वजह से मध्य प्रदेश के टंट्या भील रेलवे स्टेशन पर भी एक मान्यता है जिस वजह से वहां से गुजरने वाली सभी ट्रेन को रूक कर सलामी देनी पड़ती है।
मध्य प्रदेश में यह रेलवे स्टेशन खंडवा के नजदीक स्थित है जिसे लोग पहले पातालपानी रेलवे स्टेशन के नाम से जानते थे। उस स्टेशन से होकर जितनी भी ट्रेन गुजरती है उसे टंट्या भील मंदिर को सलामी देनी पड़ती है। वहां के लोगों की मान्यताओं के अनुसार ऐसा ना करने पर बुरा हादसा हो सकता है। इसी वजह से जब भी कोई ट्रेन टंट्या भील रेलवे स्टेशन से गुजरती हैं तो पायलट को टंट्या भील मंदिर की सलामी देना जरुरी है।
टंट्या भील कौन थे?
देश के बहुत सारे लोग यह नहीं जानते होंगे कि टंट्या भील कौन थे? तो मैं आपको बता दूं कि सन 1842 में टंट्या भील का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम भाऊसिंह था। बचपन से ही धर्नुविद्या में टंट्या को बहुत रूचि थी, इस वजह से वो बहुत जल्द धर्नुविद्या के साथ-साथ लाठी चलाने और गोफन कला में निपुण हो गए।
उसके बाद उन्होंने अपने कुछ युवा साथियों के साथ मिलकर जंगल में रहने लगे तथा अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह खड़ा करने लगे। इस वजह से अंग्रेजों ने उनका दूसरा नाम इंडियन रॉबिन हुड रख दिया। साल 1889 में कुछ लोगों नें टंट्या भील को अंग्रेजों के हाथों पकड़वा दिया। उसके बाद अंग्रेजों ने टंट्या को फांसी दे दी।
जब अंग्रेजों ने टंट्या भील को फांसी दे दी, उसके बाद उसने कालाकुंड रेलवे ट्रैक के नजदीक पतालपानी के जंगलों में टंट्या भील का शव फेंक दिया। वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि उसके बाद वहां की रेलवे ट्रैक पर हादसे होने शुरू हो गए। क्योंकि लोगों को लगता है कि आज भी वहां पर टंट्या भील की आत्मा भटकती है।
फिर टंट्या भील मंदिर का हुआ निर्माण
जब कालाकुंड रेलवे ट्रैक पर हादसा दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा, उसके बाद वहां के स्थानीय लोगों को ऐसा लगा कि उस ट्रैक के नजदीक टंट्या भील की आत्मा भटकती है। इसी वजह से हमेशा वहां पर हादसे होते रहते हैं। उसके बाद रेलवे स्टेशन पर टंट्या भील का मंदिर बना दिया गया। जब वह मंदिर बनकर तैयार हो गया, तब से वहां से गुजरने वाली सभी ट्रेन के पायलट को रुक कर सलामी देनी पड़ती। उसके बाद ही वहां से कोई भी ट्रेन आगे बढ़ सकती है।